रत्नेश मेहरा शेर-ओ-शायरी



I
कौन कमबख्त ज़िंदगी का शौकीन है। 
ये तेरा इंतज़ार है जो साँसे ले रहा है।। 

II
बारह महीने मेहनत करके ये एहसास हुआ हमको।
जितने गैर जरूरी थे, उतने ही काम तमाम किये।।

III
श्रृंगार नज़्म का तेरी अदायें बन गयीं।
दिल मे दबी टीस कवितायें बन गायीं।।

IV
वारी जाए तिरंगे पर, ये जान वतन के काम आये।
जब जान जुदा हो सीने से, होठों पे नाम हिन्दुस्तान आये।।

V
यार इतना तो चाह लेते हमें ।
के हमसे झूठ ही कह देते चाहते हैं तुम्हे।।

VI
इश्क़ वाले हैं इंतज़ार तो कर लेंगें मगर। 
तुम्हारी चाहतों ने तन्हा ज़िन्दगी कर दी।।

VII
तुमने हमारी दास्ताने-इश्क़ यूं लिखी है 
पूरे सफ्हे पे छोड़ के रक्खा है हासिया 

VIII
तुम भी किसी आँगन की तुलसी हो जाओगी। 
हम भी किसी की मांग के सिंदूर हो जाएंगे।।

IX
यार इतना तो चाह लेते हमें 
के हमसे झूठ ही कह देते चाहते है तुम्हे 

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