किसी हंसी किसी भी प्यार से खुश हो जांऊँ
Ratnesh Mehra |
किसी हंसी किसी भी प्यार से खुश हो जांऊँ
ऐ हुश्न क्या तेरे बाज़ार से खुस हो जांऊँ?
मैं तो पारस के चक्करों में हूँ समंदर में
कैसे टूटी हुई पतवार से खुश हो जांऊँ
मेरे परवर मैं तो शामिल रहा हर रोज़े में
क्या मिला जो तेरे दरबार से खुश हो जांऊँ?
यूँ तो बेरोज़गार आदमी नहीं है "रत्नेश"
जो की दीवारी इस्तिहार से खुश हो जांऊँ
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